Connection of HUman Body & Human Nature



अपने 


          बहुत बार सुना होगा, जैसी दृस्टि वैसी सृस्टि।  है और ये सच भी है।  जो मनुष्य जिस नज़र से दुनिया को देखता है जिस भाव से किसी और मनुष्य को देखता है वो उसे वैसा ही लगने लगता है।  आप इससे मनो विज्ञानं भी कह सकते है तो गलत नहीं होगा।  इसी तरह हमारा मन हमारे शरीर पर भी गहरा प्रभाव डालता है।  अगर किसिस का मन प्रसन्न नहीं है, चिंता है तो उससे मानसिक बीमारिया घेर लेती है।  उसके रक्त का प्रवाह घाट या बढ़ जाता है।  हमारी स्वदेसी चिकित्सा में इसपर विस्तार से वर्णन किया गया है।
हमारे शरीर का ढांचा ईश्वर ने बड़ा ही अनोखा बनाया है, इसी कारन हम मनुष्य संसार की सब योनियों में श्रेष्ठ है।  परन्तु आज का मानव अपनी ये शक्तियाँ खोता जा रहा है और विज्ञानं की बैशाखी पर चल रहा है।  यदि मनुस्ये सच में आज भी अपनी शक्तियाँ जागरूक कर लेता है तो वो भी ईश्वर के समान हो जाता है, तभी तो कहते है की हर मनुस्ये में भगवान् है बस हमने उससे कही खो दिया है।
हजारो साल पहले ऋषि मुनि एक जगह बैठ कर ही हजारो किलोमीटर का भ्रमण कर लेते थे।  कहानियो, ग्रंथो में हमने पड़ा है वे देवताओ के लोक जाते थे, क्या आज के मानव का विज्ञानं इतना सक्षम है ? कभी हो ही नहीं सकता।  जैसे मृग कस्तूरी उसके शरीर में होती है और वो उससे जहा कहा धुनती है, उसी तरह हम मानव है. इस्वर ने हमें सम्पूर्ण बनाया है फिर भी हम अपनी शक्तियो को भुलाकर पाश्चात्य संस्कृति अपनाते जा रहे है।
योग हमारे संस्कृति का बहुत पुराना रिस्ता है।  बस हम इससे भूल गए, और आज देखा जा रहा है की लोग फिर से इसकी तरफ आकर्षित हो रहे है. विदेशी लोग भी हमारी संस्कृति को मानते है और योग सीखने यहाँ आते है।   तो फिर हम क्यों अपनी संस्कृति को भूल रहे है. क्यूना इसे दुबारा अपनाया जाए और स्वस्थ भारत का निर्माण किया जाए।








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