Piliya ka Ayurvedic Treatment
आयुर्वेद के बारे में वात, पित्त व् कफ ये तीन दोष शरीर में जाने जाते है। ये दोष यदि वकृत हो जाए तो शरीर को हानि पहुँचते है। यदि ये वात, पित्त, और कफ संतुलित रहे तो शरीर की सभी क्रियाओं का संचालन करते हुए शरीर का पोषण करते है। जब मनुष्य बाल्य अवस्था में होता है तो उस समय कफ की प्रधानता होती है। बालक दूध ही पीटा है और उससे चलना फिरना नहीं पड़ता, बाल्य अवस्था में किसी प्रकार की चिंता नहीं होती। युवा अवस्था में धातुओं का बनना अधिक होता है। साथ ही रक्त का निर्माण अधिक होता है। रक्त का निर्माण करने में पित्त की सबसे बड़ी भूमिका रहती है। युवा अवस्था में शारीरिक व्यायाम भी अधिक होता है। इसी कारण इस अवस्था में पित्त का बढ़ना बहुत महत्वपूर्ण होता है। पीलिया रोग पीलिया र...

